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Kalandar

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الكلمات
आ चलके में सड़को से,

बैठा अब पलकों पे

हर दिन चलता में

अपनी ही शर्तो पे

ज़ख्मो से बहता लहू,

पोछा पर्दो से

मलहम लगाती कलम

मेरे दर्दो पे

सुखी ज़मी कहती

मुझपे कब बरसोगे

पर मेरा वादा

कल मिलने को तरसोगे

देते बिछा मेरे

पैरो में मखमल में

रोकू ये कह के

जुड़ा अब भी फर्शो से

सपने देखता पर

चैन से में सोया कब था

हँसा के भुला

आखिरी बार में रोया कब था

आ जाती रौनक महफिलों

में मेरे नाम से ही

इतना नायाब हु आज

दाम कोई लगा नहीं सकता

गरीब बचपन से

लगायी अब सरत है

फरीद सबसे हूँ

आवाज में ही तर्क है

फरक है में चढ़ता

नहीं भीड़ लेके

अकेले हक़ पे में

पैदा हुआ रीड लेके

वाक़िफ़ है सब तोह

फ़साने दर्द के गाऊं क्या

ज़हन में ग़ालिब तो

खज़ाना कोई लाऊं क्या

वो कहते चुब्ते

मेरे लफज बहोत

चीर देगी खामोसी

चुप हो जाऊं क्या

सजा के जुगनू देता

राहत हूँ में रातों को

उतारूं कागज़ो पे

पूरी क़ायनात को

आईने भी टूट जाते

मेरा चेहरा देख

उन्ही टुकड़ो पे

लिखता जज़्बात को

सर पे जिम्मेदारी

ख्वाहिशों को अपनी मारा

जताते कह के सब

तो लिया न सहारा

मानता हूँ मैं हारा

हज़ारो जुंग

खुदा गवाह है एक बार भी

न हिम्मत हारा

डूबा खुद में कैसे कोई कुंवा रोके

जलते सारे में आगे बढ़ता धुआँ होके

ना कभी देखता आगे क्या मुसीबत है

मेरे पीछे काफिले चलते दुआओं के

मैंने तूफ़ान से लड़ कर लोह जलाई है

तब जाके रब ने नियामतें सजाई है

मेरे अँधेरे तो रात से भी काले थे

खवाब की खातिर मैंने नींद को आग लगाई है

मेरी कलम मेरी क़ूवत

में लहरों पे समंदर लिख दूँ

दम इतना है मैं

मस्त रहता खुद ही में

में खुद की पेशानी पे

कलंदर लिख दूँ

चलके में सड़को से,

बैठा अब पलकों पे

हर दिन चलता में

अपनी ही सरतो पे

ज़ख्मो से बहता लहू,

पोछा पर्दो से

मलहम लगाती कलम

मेरे दर्दो पे

सुखी ज़मी कहती

मुझपे कब बरसोगे

पर मेरा वादा

कल मिलने को तरसोगे

देते बिछा मेरे

पैरो में मखमल में

रोकू ये कह के

जुड़ा अब भी फर्शो से

सपनो को ज़िन्दगी दी

मैंने खुद को मौत देके

लफ्ज़ो मैं जान डाली मैंने

बस खामोश रह के

जनाज़ा भारी सीने पे

घूमता बोझ लेके

कोहितूर से भी

है मजबूत मेरे होंसले ये

इरादा टूटा नहीं

खुदा से जुदा नहीं

दिलों में बस्ता रब

तो कभी मस्जिदों में

डूंडा नहीं जलूं मैं

रोज ताकि बुझे घर

का चूल्हा नहीं

भटकता में मुसाफिर

पर में मंज़िलो को भूला नहीं

आँखों से बहता नीला रंग

मेरी आशिकी है

देखा बस गुरूर तुम ना वाक़िफ़

मेरी सादगी से कलाकार ही

बस जाने कैसे उसकी रात बीते

होते ही अँधेरा दिल लगाता वो चांदनी से

में लिख के बस दिखाता

तुझे आइना हूँ

गलती इसमें मेरी क्या की

आये न पसंद तुझको को तू

बाते खींच के बताता

मेरा दायरा क्यों

फिर भी गाने डालू

तुझे हर गाने में

ज़ायका दूँ

पड़ी किताबे नहीं सिखाता मुझे बिता कल

नींद में चलु खवाबो का रहा मैं पीछा कर

पर ये है मैराथॉन तो कहता धीमा चल

जल्दी तोड़ेगा तो खायेगा कैसे मीठा फल

नज़र के बाहर हूँ मैं सबर के साथ हूँ मैं

ये रैपर मुर्शिद है अदब से मेरा हाथ चूमे

कितनो की हसद और कितनो की बना आरज़ू मैं

खामोश दिल की छुपी हुई आवाज़ हूँ में

घर का चिराग हूँ मैं सबको मैं रौशनी दूँ

मंज़िल मिलेगी पर सफर से अपने लौट नहीं तू

तू तेरी सोच से बड़ा है जायदा सोच नहीं तू

बस अपने दिल की सुन तू खो जाता है शोर में क्यूँ

सीखा है गमो में मैंने डूब के

पैरो में छाले फिर भी रिश्ता रास्तो से और धुप से

हम भी क्या खून कागज़ को कहते महबूब है

सियाही जान तो छिड़कता हूँ उससे मासूक पे

चलके में सड़को से,

बैठा अब पलकों पे

हर दिन चलता में

अपनी ही सरतो पे

ज़ख्मो से बहता लहू,

पोछा पर्दो से

मलहम लगाती कलम

मेरे दर्दो पे

सुखी ज़मी कहती

मुझपे कब बरसोगे

पर मेरा वादा

कल मिलने को तरसोगे

देते बिछा मेरे

पैरो में मखमल में

रोकू ये कह के

जुड़ा अब भी फर्शो से