ना जाने कब से
उमीदें कुछ बाक़ी हैं
मुझे फिर भी तेरी याद क्यो आती है
ना जाने कब से
दूर जितना भी तुम मुझ से पास तेरे में
अब तू आदत सी है मुझको ऐसा जीना में
ज़िंदगी से कोइ शिकवा ही नहीं है
अब तू ज़िंदा हों में इस नीले आसमान में
चाहत ऐसी है यॅ तेरी बढ़ती जाए
आहत ऐसी है यॅ तेरी मुझको सताए
यादें गहरीन है इतनी दिल डूब जाए
और आँखों में यॅ घुमम नूं बन जाए
अब तू आदत सी है मुझको ऐसा जीना में