कभी देखा है तूने ख़्वाबों के रंग ढलते?
कभी देखी गुम इल्तिजा? (कभी देखी गुम ये इल्तिजा?)
कभी पाया ख़ुद को भी, अँधेरों में सुन सारी
बहारों की धुन बदलिया (बहारों की धुन ये बदलिया)
मैंने भी ग़म के हैं मौसम सहे सारे
देखे हैं क़ुदरत के क़र्ज़-ओ-करम सारे
है अभी देखा ये जहाँ
मैंने भी ग़म के हैं मौसम सहे सारे
देखे हैं क़ुदरत के क़र्ज़-ओ-करम सारे
है अभी देखा ये जहाँ
क्यूँ पूछा मैंने ना, है मेरा क्या कहना
क्या है जो सच है मेरा? (क्या है जो सच है मेरा?)
आँसू सजा के भी जो खोया, पाया ना
समझी क्यूँ ना मैं इंतिहा? (समझी क्यूँ ना मैं इंतिहा?)
जिसमें है जो भी कहा, बीता छोड़ो भी
अब से ना सहना, जो कहना है खुल के ही
ख़ुद को तराशु मैं ज़रा (ख़ुद को तराशु मैं ज़रा)
देखेगी दुनिया भी, देखेंगे पल सारे
मेरी ख़ुदी से हों रोशन जहाँ मेरे
ढूँढे जो जीने की वजह
ख़ुश है जो दिल तेरा, प्यारा जहाँ लागे
राहों से तेरी जो साया पीछा भागे
देखेंगे फिर से एक सुबह
(देखेंगे फिर से एक सुबह)
(एक सुबह, एक सुबह)
(एक सुबह, एक सुबह)
(एक सुबह, एक सुबह)
(देखेंगे फिर से एक सुबह)