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इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

जान कर हम ने उन्हें नामेहरबाँ रहने दिया

इक ख़लिश को हासिल-ए

कितनी दीवारों के साये

कितनी दीवारों के साये हाथ फैलाते रहे

इश्क़ ने लेकिन हमें बेख़्वानमाँ रहने दिया

इक ख़लिश को हासिल-ए

आरजू-ए- इश्क़ भी

आरजू-ए- इश्क़ भी बख्शी दिलों को इश्क़ ने

फ़ासला भी मेरे उनके दर्मियाँ रहने दिया

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

Ustad Amanat Ali Khan থেকে আরও

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