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Aditya Rikharihuatong
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हमदम-हमदम

हमदम-हमदम

ओ, मेरे हमदम-हमदम, थोड़ा-थोड़ा तो ग़म हमको दे-दे ना

कि मरहम-मरहम मिल जाए हमें हाथों से तेरे

आजा ना कि कह दें तुझसे ′गर हम, "तेरा होना है"

क्या मौसम-मौसम रह जाओगी बाँहों में मेरे?

ये ऐसी-वैसी बातें नहीं हैं, यूँ ही लिखते-गाते नहीं हैं

यूँ ही तुझको सोचें सुबह-शब हम, यूँ ही मुस्कुराते नहीं हैं

तू ख़ुद को 'गर नज़रों से मेरी जो देखेगी, दिल हार जाएगी

जो आँखों से आँखें मिलाएँगी, यूँ डूबेगी, ना पार जाएगी

जो सीने पे रखेगी हाथों को, मेरी जानाँ, फिर जान पाएगी

तेरे नाम के ही प्याले हैं हाथों में मेरे

ओ, मेरे हमदम-हमदम, थोड़ा-थोड़ा तो ग़म हमको दे-दे ना

कि मरहम-मरहम मिल जाए हमें हाथों से तेरे

आजा ना कि कह दें तुझसे ′गर हम, "तेरा होना है"

क्या मौसम-मौसम रह जाओगी बाँहों में मेरे?

मेरी जाँ, तू किताबों सी है, मेरे सारे जवाबों सी है

कोई पूछे जो कैसी है तू, कि मैं कह दूँ "गुलाबों सी है"

कि तू कमरे में महके मेरे, कि तू छू ले मुझे इस क़दर

कि तू बैठे सिरहाने कभी, कि ये ख़्वाहिश भी ख़्वाबों सी है

तू दिल की नमाज़ों में देखेगी कि हर एक दुआ भी तो तेरी है

तू हँस के अगर माँग लेगी जो कि ले-ले ये जाँ भी तो तेरी है

कि कैसा नशा भी ये तेरा है? कि कैसी बीमारी ये मेरी है?

कि लिखने में हो गए हैं माहिर हम बारे में तेरे

ओ, मेरे हमदम-हमदम, थोड़ा-थोड़ा तो ग़म हमको दे-दे ना

कि मरहम-मरहम मिल जाए हमें हाथों से तेरे

आजा ना कि कह दें तुझसे 'गर हम, "तेरा होना है"

क्या मौसम-मौसम रह जाओगी बाँहों में मेरे?

हमदम-हमदम, थोड़ा-थोड़ा तो ग़म हमको दे-दे ना

कि मरहम-मरहम मिल जाए हमें हाथों से तेरे

आजा ना कि कह दें तुझसे 'गर हम, "तेरा होना है"

क्या मौसम-मौसम रह जाओगी बाँहों में मेरे?

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