ग़फ़लत में सोने वालो.....
रब ने तुम्हे पुकारा...
उठकर ज़रा... तो देखो
कुदरत का ये... नज़ारा
(Mohammad Rafi)
रेहमत का उजाला छाया
अल्लाह ने ये फ़रमाया
उठो ए मोमिनों
माहे रमजान आया
उठो ए मोमिनों
माहे रमजान आया
खुदा मोमिनों पर फ़िदा
हो रहा हैं
मगर तू अभी बेखबर
सो रहा हैं
घडी ये मुकदस्तु
क्यों खो रहा हैं....
घडी ये मुकदस्तु
क्यों खो रहा हैं
है सारे नमाज़ी जागे
रेहमत भी खड़ी हैं आगे
उठो ए मोमिनों
माहे रमजान आया
उठो ए मोमिनों
माहे रमजान आया
के हैं फर्ज रोज़ा
यहाँ हर बसर पर
क़यामत के दिन अपने
दामन में भर कर
यही नेकिया सबको
जाना हैं लेकर
ये बरकत की राते
ये दिन हैं मनुवार
खुदा आज रेहमत
लुटाते हैं घर घर
हुआ बंद देखो
गुनाहों का दफ्तर
बिछा दी फ़रिश्तो ने
रेहमत की चादर...
बिछा दी फ़रिश्तो ने
रेहमत की चादर
कुरान के ये तीस पारे
रमजान में रब ने उतारे
उठो ए मोमिनों
माहे रमजान आया...
उठो ए मोमिनों
माहे रमजान आया
गुनाहों से तोबा तू कर...ले खुदारा
वो रज्जाक है
बेकसो का सहारा
नहीं उसकी रहमत का
कोई किनारा..... नहीं
उसकी रहमत का
कोई किनारा
ईमान को कर लो ताजा
रहमत का खुला दरवाजा
उठो ए मोमिनो
माहे रमजान आया
रहमत का उजाला छाया
अल्लाह ने ये फरमाया
उठो ए मोमिनो
माहे रमजान आया
उठो ए मोमिनो
माहे रमजान आया
माहे रमजान आया
माहे रमजान आया