जीवन ज्योति भहुजती जाए
तुझ बिन कौन जगाए
तुझ बिन कौन जगाए
परभु जी परभु जी
तुझ बिन कौन जगाए
चारो और छाया अंधियारा
सुझत नही दूर किनारा
चारो और छाया अंधियारा
सूज़्त् नही डोर किनारा
तेरा ही है एक सहारा
तेरा ही है एक सहारा
तुझ बिन कौन सुझाए
तुझ बिन कौन सुझाए
परभु जी परभु जी
तुझ बिन कौन सुझाए
दुख आए परवाह नही है
सुख पाने की चाह नही है
दुख आए
मैं मूर्ख मंज़िल को डुँड़ी
मैं मूर्ख मंज़िल को डुँड़ी
तुझ बिन कौन बताए
तुझ बिन कौन बताए
परभु जी परभु जी
तुझ बिन कौन सुझाए
उलझे है जाग
उच नीच की उलझन में
उच नीच की उलझन में
बोलो कैसे चैन मिले
फिर जीवन में
चैन मिले फिर जीवन में
बनी हमारी बिगड़ रही है
बनी हमारी बिगड़ रही है
तुझ बिन कौन बनाए
तुझ बिन कौन बनाए
परभु जी परभु जी
तुझ बिन कौन बताए