क्यों ऐसा लगे
पल ख्वाइशों केसदी से है रवाना
दिल बेज़ुबान से कह नहीं सके
जो तुमको है बताना
बिना डोर की हम पतंग
मझधार में है मलंग
रुकी रुकी
दास्ताँ
छू ले
छू ले आसमान
ख्वाबों के
बादल से भरा
छू ले आसमान
आ आ आ आ
खुद से जो मिले
अजनबी लगे क्यूँ आइना हमारा
धुंधला सा लगे
और फीका लगे
क्यों अपना हर फसाना
बिना डोर की हम पतंग
मझधार में है मलंग
रुकी रुकी
दास्ताँ
छू ले
छू ले आसमान
ख्वाबों के
बादल से भरा
छू ले आसमान
लाखों ख्वाबों के
भरे गुब्बारे से उड़े कयूँ है और कहाँ
है कश्मकश धुआं है
हर नज़र में क्यूँ
उठा उठा तूफ़ान
एक दिन ऐसा हो
हम भी जानेंगे खुद को
जूडसे जायेंगे
किस्से यह बेशुमार
छू ले
छू ले आसमान
ख्वाबों के
बादल से भरा
छू ले आसमान