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Yeh Shaam

Shubham Kabrahuatong
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ये रोशनी चिराग है

पन्नों पे लिखी जो बात है

ये पढ़ के ना समझ सकूँ

मैं क्या करूँ? हन , क्या करूँ

ये रिश्ते भी तो राख हैं

इस शाम का क्या मिज़ाज है

लबों पे जो आई थी बात है

किसे कहूँ? ये कोई सुनाए मुझे

अकेला था, अकेला है

अकेला ही जाएगा कहीं

ये शाम अकेली है, अकेली थी

अकेली ही ढल जाएगी अभी

ये चार दीवारी नाम है

आने वाला कोई तूफान है

बंजर ये ज़मीन-आसमान है

मैं रो ना सकूँ और हंस ना सकूँ

ये नींद भी एक ख्वाब है

टूटता-गिरता आज है

कहीं दूर छिपा कोई राज है

बताऊं किसे? ये कोई बताए मुझे

अकेला था, अकेला है

अकेला ही जाएगा कहीं

ये शाम अकेली है, अकेली थी

अकेली ही ढाल जाएगी अभी

की तू अकेला था, अकेला है

अकेला ही जाएगा कहीं

ये रात अकेली है, अकेली थी

अकेली ही डूब जाएगी अभी

थम जाएगी यून ही

रुक जाएगी अभी

ढल जाएगी यून ही

Davantage de Shubham Kabra

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