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बावरा सा मन ये माने ना

तेरी आहट से ये मुँह मोड़े ना

ऐसी लागी मुझसे ये चादर तेरी

कुछ भी अब मैं माँगूँ नहीं

परछाइयों से तेरी छूटे ना

अब समझे ना मन मेरा

इन रिश्तों के धागों से बँधा हुआ

अब तू

ना जाने क्यूँ

राहों से दूर

क्यूँ ऐसी धूप?

मन है पंछी मेरा भागे तेरी ओर, तू डाले दाना

मौक़ा तू दे मुझको, जितने वादे सबको है निभाना

थोड़ी ग़लती जब करूँगा, रूठना ना मुझसे ज़्यादा

हाँ, मैं थोड़ा पागल हूँ, पर दूर मुझसे ना जाना

सच्चाइयों के मैं अलावा कुछ भी ना कहूँगा

अब तू ही है दिल में मेरे

मन में जितनी बातें हैं, बता भी ना

अब तू

मेरी है रूह

मेरी ज़िंदगी का नूर

तू ही, बस तू

अब कहती हूँ

कहना है बाक़ी क्या?

तू जो ऐसे ही रूठा हुआ

मुझसे यूँ क्यूँ है जुदा?

अब तू

ना जाने क्यूँ

राहों से दूर

क्यूँ ऐसी धूप?

Selengkapnya dari Anubha Bajaj/Karm Solah

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