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चंद्रमा ललाट जागे, जटाओं में गंगा सोई

तेरे जैसा आदियोगी हुआ है, ना होगा कोई

हाँ, चंद्रमा ललाट जागे, जटाओं में गंगा सोई

तेरे जैसा आदियोगी हुआ है, ना होगा कोई

बाबा, इतना सरल तू, हर प्रार्थना का फल तू

मेरे भोले शंभु, हर-हर शंभु, निर्बलों का है बल तू

हैं माटी के दीये हम तो, हवा से कैसे टकराते

तेरे हाथों ने घेरा है, नहीं तो कब के बुझ जाते

हैं माटी के दीये हम तो, हवा से कैसे टकराते

तेरे हाथों ने घेरा है, नहीं तो कब के बुझ जाते

दुख की सिल्वटें आईं जब हमारे माथे पर

कोई ढूँढा है शिवाला और झुका दिया है सर

धड़कनों से आती है अब कहाँ ध्वनि कोई

आठों पहर सीने में गूँजता है "हर-हर-हर"

बाबा, दर्शन तू, नयन तू, बाबा रत्नों का रतन तू

मेरे भोले शंभु, हर-हर शंभु, निर्धनों का है धन तू

तेरे पग में ना झुकते तो उठा के सर ना जी पाते

तेरे बिन कौन है, मरुस्थल में भी जो मेघ बरसा दे

हैं माटी के दीये हम तो, हवा से कैसे टकराते

तेरे हाथों ने घेरा है, नहीं तो कब के बुझ जाते

दानियों का दानी है तू, सारी सृष्टि याचक है

नाथ, भय उसे है किसका जो तेरा उपासक है

आते-जाते रहते हैं धूप-छाँव से नाते

तू पिता है, तेरी करुणा जन्म से चिता तक है

बाबा, जीवन तू, मरण तू, बाबा, ममता की छुवन तू

ओ रे, भोले शंभु, हर-हर शंभु, सब सुखों का कारण तू

कोई गिनती नहीं जग में, करम तेरे जो गिनवा दे

समंदर स्याही होता तो तेरे उपकार लिख पाते

हैं माटी के दीये हम तो, हवा से कैसे टकराते

तेरे हाथों ने घेरा है, नहीं तो कब के बुझ जाते

Selengkapnya dari Jubin Nautiyal/Payal Dev/Manoj Muntashir

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