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Aisi Hoti Hai Maa

Kavita Sethhuatong
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अपनी बाहु में मुझको समेटे हुए

अपनी बाहु में मुझको समेटे हुए

तन से आचल की सूरत लपेटे हुए

गीले बिस्तर पे सरदी में लेटे हुए

गीले बिस्तर पे सरदी में लेटे हुए

सुबह होने पे कुछ देर सोती है मा ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

आसमानों से परियां बुलाती है वो

थबकियादे के लोरी सुनाती है वो

चंदा मामा का चेहरा दिखाती है वो

फूल मम्ता के यूँ भी पिरोती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

गम का एहसास भी तुझको होने न दू

तुझको अशकों की माला पिरोने न दू

दुख के मौसम में भी तुझको रोने न दू

तेरा हर आसु सच्चा मोती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

ऐसी होती है मा

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