جہاں آرا
मदन मोहन - मोहम्मद रफ़ी
मम..मम..मम.
किसी की याद में,
दुनियां को हैं, भुलाये~~~ हुये~
किसी की या~~द में,
दुनियां को हैं भुलाये~~ हुये~~
ज़माना गुज़रा है, अपना ख़्हयाल, आअये~~~हुये
ज़माना गुज़रा है, अपना~~ख़्हयाल आअये हुये~
बड़ी अजीब, ख़ुशी है, ग़म~-ए-मुहब्बत भी~
बड़ी अजीब, ख़ुशी है, ग़म~-ए-मुहब्बत भी~
हँसी लबों पे, मगर दिल पे, चोट खाये~~हुये
किसी की याद में,
दुनियां~ को हैं भुलाये हुये..
हज़ार पर्दे हों, पहरें हों,
या~~~ हों दीवारें~~
हज़ार पर्दे हों, पहरें हों,
या~~ हों दीवारें~
रहें~गे मेरी, नज़र में तो वो,~
समाये~~~ हुये~
किसी की याद में,
दुनियां को हैं, भुलाये हुये..
किसी के हुस्न की, बस इक किरण ही काफ़ी है~
किसी के हुस्न की, बस इक किरण ही काफ़ी~ है
ये लोग क्यूँ मेरे, आगे हैं,
शम्मा लाये~~~ हुये~
ये लोग क्यूँ मेरे, आगे हैं,
शम्मा लाये~~~ हुये~
किसी की याद में,
दुनियां को हैं, भुलाये~~~ हुये~
ज़माना गुज़रा है, अपना~~ ख़्हयाल आअये हुये.