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सोच के दायरों को

कभी तो पार कर

खुद की क़ैद से

खुद को आज़ाद कर

सोच के दायरों को

कभी तो पार कर

खुद की क़ैद से

खुद को आज़ाद कर

सपने उधार के

मन से निकाल दे

क्यों तू है जी रहा

लम्हे बेकार के

जी ले ज़रा

कर मनमानियां

क्यों दे रहा

तू कुर्बानियाँ

ज़िन्दगी सदा

मंज़िल ही नहीं

बुलायें तुझे

बुलायें तुझे

ये आज़ादियाँ

हो हो हो हो हो हो

हो हो हो हो हो हो

वक़्त की शाख से

कुछ लम्हे चुन ले

दुनिया से फुर्सत ले

कभी खुद की सुन ले

सपने उधार के

मन से निकाल दे

क्यों तू है जी रहा

लम्हे बेकार के

जी ले ज़रा

कर मनमानियां

क्यों दे रहा

तू कुर्बानियाँ

ज़िन्दगी सदा

मंज़िल ही नहीं

बुलायें तुझे

ये आज़ादियाँ

हो हो हो हो हो हो

हो हो हो हो हो हो

जी ले ज़रा

कर मनमानियां

क्यों दे रहा

तू कुर्बानियाँ

जी ले ज़रा

जी ले ज़रा

जी ले ज़रा

जी ले ज़रा

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