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आज अगर मिलन की रात होती

जाने क्या बात होती, तो क्या बात होती

सुनते हैं, जब प्यार हो तो दिए जल उठते हैं

तन में, मन में और नयन में दिए जल उठते हैं

आजा पिया, आजा

आजा पिया, आजा, हो

आजा पिया, आजा

तेरे ही, तेरे ही लिए जलते दिए

बितानी तेरे साए में, साए में ज़िंदगानी

बितानी तेरे साए में, साए में...

कभी-कभी...

कभी-कभी ऐसे दीयों से लग है जाती आग भी

धुले-धुले से आँचलों पे लग हैं जाते दाग़ भी

है वीरानों में बदलते देखे मन के बाग़ भी

सपनों में शृंगार हो तो दिए जल उठते हैं

ख़्वाहिशों के और शरम के दिए जल उठते हैं

आजा पिया, आजा

तेरे ही, तेरे ही लिए जलते दिए

बितानी तेरे साए में, साए में ज़िंदगानी

बितानी तेरे साए में, साए में...

मेरा नहीं...

मेरा नहीं है वो दीया जो जल रहा है मेरे लिए

मेरी तरफ़ क्यूँ ये उजाले आए हैं? इनको रोकिए

यूँ बेगानी रोशनी में कब तलक कोई जिए?

साँसों में झंकार हो तो दिए जल उठते हैं

झाँझरों में, कंगनों में दिए जल उठते हैं

आजा पिया, hmm-mmm, जलते दिए

बितानी तेरे साए में, साए में ज़िंदगानी

बितानी तेरे साए में, साए में...

साए में, साए, तेरे साए में, साए

तेरे साए में, साए तेरे...

साए में, साए, तेरे साए में, साए (साए में, तेरे...)

तेरे साए में, साए तेरे... (बितानी)

साए में, साए, तेरे साए में, साए (ज़िंदगानी)

तेरे साए में, साए तेरे... (साए में)

साए में, साए, तेरे साए में, साए (तेरे)

तेरे साए में, साए तेरे... (बितानी ज़िंदगानी)

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