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Mhara girdhar lal by indresh upadhyay ji(SIMRAN)

Indresh Upadhyay Jihuatong
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म्हारा नटराजा थारे नचायो नाचूं,

प्यारा गिरधरलाल थारे नचायो नाचूं ।।

थारे घर में रहूं निरंतर,

थारी हाट चलाऊं ।

थारे धन से थारे जन की,

सेवा टहल बजाऊं ।।

ज्यों रंग रा कपड़ा पहिरावे,

वैसोही स्वांग बनाऊं।

जैसा बोल बुलावे मुख से,

वैसी ही बात सुनाऊं ।।

रुखा सुखा जो कछु देवें,

थारे भोग लगाऊं ।

खीर परस या छाछ राबड़ी,

सबड प्रेम से खाऊं ।।

म्हारा नटराजा थारे नचायो नाचूं,

प्यारा गिरधरलाल थारे नचायो नाचूं ।।

घर का प्राणी कहा ना माने,

मन मन खुशी मनाऊं ।

थारे इस मंगल विधान में,

मैं क्यों टांग अडाऊं ।।

म्हारा नटराजा थारे नचायो नाचूं,

प्यारा गिरधरलाल थारे नचायो नाचूं ।।

जो तूं ठोकर मार गिरावे,,

लकड़ी ज्यूं गिर जाऊं ।

जो तूं माथे ऊपर बिठावे,

तो भी ना शरमाऊं ।।

म्हारा नटराजा थारे नचायो नाचूं,

प्यारा गिरधरलाल थारे नचायो नाचूं ।।

कोस हजार पकड़ ले जावे,

दौड़ो दौड़ो जाऊं।

जो तूं आसन देकर बिठावे,

गोडो नाही हिलाऊं ।।

म्हारा नटराजा थारे नचायो नाचूं,

प्यारा गिरधरलाल थारे नचायो नाचूं ।।

जो तूं तन के रोग लगावे,

ओढ़ सिरख सो जाऊं।

जो तूं काल रूप बन आवे,

लपक गोद में आऊं ।।

म्हारा नटराजा थारे नचायो नाचूं,

प्यारा गिरधरलाल थारे नचायो नाचूं ।।

उल्टा सुल्टा जो कुछ करले,

मंगल रूप लखाऊं ।

थारी मन चाही में प्यारा,

अपनी चाह मिलाऊँ ।।

म्हारा नटराजा थारे नचायो नाचूं,

प्यारा गिरधरलाल थारे नचायो नाचूं ।।

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