वो, दिल की दहलीज़ पे खड़ा है एक सपना, एक सपना
फिर क्यूँ? क्यूँ च्छूप के बैठ गया है ख्वाब अपना? ख्वाब अपना
अंजान राहें, ना जाने कहाँ बुलाएँ
अंजान राहें, ना जाने कहाँ ले जाएँ
गम में ख़ुशी हो, इन आँखों में जब नमी हो
सारे सितारे छू लून मैं आज
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
ओ ओ ओ ओ ओ ओ
तूने लिखी है खुद से अपनी ही दास्तान
तू जी रहा है
तूने है खींची लकीरें अपने हाथों की
कर खुद पे तू पूरा यक़ीन
अंजान राहें, ना जाने कहाँ बुलाएँ
अंजान राहें, ना जाने कहाँ ले जाएँ
गम में कुशी हो, इन आँखों में जब नमी हो
सारे सितारे छू लून मैं आज
ओ ओ ओ ओ ओ