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तुम बिन लागे क्यों ना मन

चुभता है ये हल्का

झरनों जैसे बहते तुम

सावन या हो बरखा

कहानियां लिख दी हैं वो

लिफाफों से जुड़ती हैं जो

इन पहेलियों से बेखबर है तू

चौबारों से मुड़ती हुई

संग पंछियों के उड़ती हुई

उन काफ़िलों के बस सामने है वूऊ

तू मिला, तू मिला, तू मिला है

तू मिला, तू मिला, तू मिला हा आ

तुम बिन लागे क्यों ना मन

चुभता है ये हल्का

झरनों जैसे बहते तुम

सावन या हो बरखा

कहानियां लिख दी हैं वो

लिफाफों से जुड़ती हैं जो

इन पहेलियों से बेखबर है तू

चौबारों से मुड़ती हुई

संग पंछियों के उड़ती हुई

उन काफ़िलों के बस सामने है वू

तू मिला, तू मिला, तू मिला

तू मिला, तू मिला, तू मिला

फिर लिखी वह शायरी, जिसमें तू न था

इसको मैं बदल ही दूं, तू है जो मिला

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