मन रे तू काहे ना धीर धरे
वो निर्मोही मोह ना जाने,
जिनका मोह करे
मन रे तू काहे न धीर धरे
दर्द ही देंगे सारे रिश्ते,
किनसे आस लगाये
जितना गहरा है जो समंदर,
उतनी प्यास बढ़ाये
किनसे उम्मीद करे!
मन रे तू काहे न धीर धरे
उतना ही उपकार समझ कोई
जितना साथ निभा दे
जनम मरण का मेल है सपना
ये सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे
मन रे तू काहे ना धीर धरे
वो निर्मोही मोह ना जाने,
जिनका मोह करे