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Sakhi ri bankey bihari se hamari lad gyi akhiya by indresh upadhyay ji(SIMRAN)

Indresh Upadhyay Jihuatong
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歌詞
レコーディング
सखी री बांके बिहारी से हमारी लड़ गयी अंखियाँ ।

बचायी थी बहुत लेकिन निगोड़ी लड़ गयी अखियाँ ॥

ना जाने क्या किया जादू यह तकती रह गयी अखियाँ ।

चमकती हाय बरछी सी कलेजे गड़ गयी आखियाँ ॥

चहू दिश रस भरी चितवन मेरी आखों में लाते हो ।

कहो कैसे कहाँ जाऊं यह पीछे पद गयी अखियाँ ॥

भले तन से निकले प्राण मगर यह छवि ना निकलेगी ।

अँधेरे मन के मंदिर में मणि सी गड़ गयी अखियाँ ॥

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