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कैसा सुकून है

हर पासे तू है

आता नई है मुझकौ सहना

भरदौ इस दिल के ख़ाके

बोलो बदले में किया दें

मुहब्बत कम पड़े तो कहना

लिख डाले क़सीदे कहीं तुम पढ़ती नहीं

नाज़ुक वो हालत, दिल और बिगड़ती रही

शिकायतें लबो पे आती रही

सुधरने की तौफ़ीक़ कहाँ थी अभी

ऐक शाम जब आओगे गीले गिनवाओगे

केहदुँगा मुझे तुम याद ही नहीं

इंतेहा हुई बस एब्ब

हर ज़ुल्म पहले से बढ़ कर

थम गये हैं वो आते आते जौ जान देते थे कल तक

आते हैं तेरे कदमों में

कितने मुझ जैसे हर शब ही

नायाब हैं उजाले बरसौ से

यह सारी रौनके तुझसे थी

तासूर अड़ह लगे आज

बे-क़ाबू हैं गम के साज़

किया कुछ करवा गयी है "मौसीक़ी"

वो ऐक लम्हा, ऐक ख़याल, लगता है अब ऐक ऐक साल

आज़ीज़ आगाए हैं खुद से ही

आज़ीज़ आगाए सहते सहते

हर अदा के आगे बहके

सिर्फ़ खेरियात पूछें वो

दिल लगा गये बैठे बैठे

किया अब दिल बेचाए बोलो

या घनीमत समझें दोनो

बारिश की तरह हू तुम भी मन बेहला देते हो छोड़ो

हँसना तक भूल चुके हैं हम

यह चेहरे उदास ही सही हैं

इतनी शिद्दत से टूटे हैं के जुड़ जायें वापिस सवाल ही नई हैं

नींद तो बस ऐक बहाना था

तुझ से रिहाई का दर्द-ए-तन्हाई का

वरना कसम खुदा की इन्न आँखौ में बचा कोई खुवाब ही नहीं है

आते हैं तेरे कदमों में

कितने मुझ जैसे हर शब ही

नायाब हैं उजाले बरसौ से

यह सारी रौनके तुझसे थी

तासूर अड़ह लगे आज

बे-क़ाबू हैं गम के साज़

क्या कुछ करवा गयी है "मौसीक़ी"

वो ऐक लम्हा, ऐक ख़याल, लगता है अब ऐक ऐक साल

आज़ीज़ आगाए हैं खुद से ही

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