Track recreated by:--- Kundan
Singer :- Ustad Mehdi Hassan Sahab
Poet :- Mirza Ghalib
मुद्दत, हुई है यार को, मेहमाँ, किये हुए
मुद्दत, हुई है यार को, मेहमाँ, किये हुए
जोश-ए-क़दह, से, बज़्म, चराग़ां किये हुए
मुद्दत, हुई है यार को, मेहमाँ, किये हुए
मुद्दत, हुई है यार को....
(मुद्दत = अरसा, लम्बा समय),
(जोश-ए-क़दह = शराब का उबाल, प्यालों का उत्सव),
(बज़्म = महफ़िल)
जी ढूँढता है फिर वही, फ़ुर्सत के रात दिन
जी ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ, किये हुए
मुद्दत, हुई है यार को....
(तसव्वुर-ए-जानाँ = माशूक़ के ख़यालों में खोना)
इक नौ-बहार-ए-नाज़ को, ताके है, फिर निगाह
इक नौ-बहार-ए-नाज़ को, ताके है, फिर निगाह
चेहरा फ़रोग़-ए-मय से गुलिस्ताँ, किए हुए
मुद्दत, हुई है यार को....
(नौबहार-ए-नाज़ = सौंदर्य अभिमान की नई बहार में डूबा हुआ आकार, नव यौवन के रंगों से लहलहाता रूप,
फ़रोग़-ए-मैं = शराब की दमक, मदिरा की आभा)
ग़ालिब, हमें न छेड़, कि फिर जोश-ए-अश्क से
ग़ालिब, हमें न छेड़, कि फिर जोश-ए-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्य-ए-तूफ़ाँ, किये हुए
जोश-ए-क़दह, से, बज़्म, चराग़ां किये हुए
मुद्दत, हुई है यार को, मेहमाँ, किये हुए
मुद्दत, हुई है यार को....
(जोश-ए-अश्क = आँसुओं का उबाल), (तहय्य-ए-तूफ़ाँ = तूफ़ान लाने का दृढ़ निश्चय)