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Bawra

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छोटे छोटे सपने क्यूँ देखे, उड़ना है ऊँचा, सोचे हम बड़ा

जाना है मंज़िल तक तो चल जरा, आज़ादी लेके भी गुलाम है खड़ा

ऐसे कैसे जी रहा है, हर ग़म तू क्यूँ पी रहा

बावरा मन मेरा जाने ना ये क्या हो रहा है

मनचला, सरफिरा अपनी ही धुन में चला

गाँधी, ना गाँधी जैसा कोई यहाँ

बनना है बन्दर सबका काम यहाँ

होते है गंजे पर वो बात कहाँ

पल दो पल का है सबका साथ यहाँ

कैसे कह रहा है अपना जो था कल मिला

बावरा मन मेरा जाने ना ये क्या हो रहा है

मनचला, सरफिरा अपनी ही धुन में चला

राही चल ले अपने रास्ते, जैसा हे तू वैसा बन ले

राही चल ले अपने रास्ते, जैसा हे तू वैसा बन ले

कैसे सह रहा है, घुटके तू क्यूँ जी रहा

बावरा मन मेरा जाने ना ये क्या हो रहा है

मनचला, सरफिरा अपनी ही धुन में चला

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