मैं हूँ एक उड़ता परिंदा
तू आसमाँ की है धूप सा
अँधेरों की ये कैसी वजह
इन रास्तों में भी है रूह किधर मेरी?
खिड़कियों से देखूँ मैं यूँ दिल ढले
सोचूँ मैं यूँ ऐसे इन हवाओं में
मेरी धुन क्यूँ है अनसुनी
वादियों की नाव सा मैं
किनारा ढूँढता हूँ बे-वजह
सूनी-सूनी रातों में मैं
बादलों को देखूँ बे-वजह
कह दूँ तुझसे ये बातें
कोई समझे ना इरादे क्यूँ?
क्यूँ तेरी मुझे है फ़िकर?
क्यूँ है ना तू इधर?
खिड़कियों से देखूँ मैं यूँ दिल ढले
सोचूँ मैं यूँ ऐसे इन हवाओं में
मेरी धुन क्यूँ है अनसुनी
ये पर में है सूने से, उसी की राह ढूँढते
जो लाए मेरे हाथों में ये ज़िंदगी मेरी
तू चाहे तो मैं भूल जाऊँ मैं
कौन हूँ, है मेरी क्या हँसी
ये आँखें मेरी हैं क्यूँ भरी?
मेरी ही राहों की है ये नमी
ना जानूँ मैं ये कैसी है कमी
कहाँ हैं चाहतें उड़ी मेरी
ना जानूँ मैं ये कैसी है कमी
कहाँ हैं चाहतें उड़ी मेरी
मेरी धुन क्यूँ है अनसुनी