Movie/Album: तुम तो ठहरे परदेसी (1998)
Music By: मोहम्मद शफी नियाज़ी
Lyrics By: ज़हीर आलम
Performed By: अल्ताफ राजा
तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे
सुबह पहली गाड़ी से, घर को लौट जाओगे
सुबह पहली गाड़ी से...
जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी
(खिंचे खिंचे हुए रहते हो, ध्यान किसका है
ज़रा बताओ तो ये इम्तेहान किसका है
हमें भुला दो मगर ये तो याद ही होगा
नई सड़क पे पुराना मकान किसका है)
जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी
आँसुओं की बारिश में तुम भी भीग जाओगे
तुम तो ठहरे परदेसी...
ग़म की धूप में दिल की हसरतें न जल जाएं
(तुझको देखेंगे सितारे तो ज़िया मांगेंगे
और प्यासे तेरी जुल्फों से घटा मांगेंगे
अपने कांधे से दुपट्टा न सरकने देना
वरना बूढ़े भी जवानी की दुआ मांगेंगे (ईमान से))
ग़म की धूप में दिल की हसरतें न जल जाएं
गेसुओं के साए में कब हमें सुलाओगे
तुम तो ठहरे परदेसी...
मुझको क़त्ल कर डालो शौक़ से मगर सोचो
(इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन
अरे हम भी चले गए तो मुहब्बत करेगा कौन
इस घर की देखभाल को वीरानियां तो हों
जाले हटा दिये तो हिफ़ाज़त करेगा कौन)
मुझको क़त्ल कर डालो शौक़ से मगर सोचो
मेरे बाद तुम किस पर ये बिजलियां गिराओगे
तुम तो ठहरे परदेसी...
यूं तो ज़िंदगी अपनी मैकदे में गुज़री है
(अश्क़ों में हुस्न-ओ-रंग समोता रहा हूँ मैं
आंचल किसी का थाम के रोता रहा हूँ मैं
निखरा है जा के अब कहीं चेहरा शऊर का
बरसों इसे शराब से धोता रहा हूँ मैं)
(बहकी हुई बहार ने पीना सिखा दिया
पीता हूँ इस गरज़ से के जीना है चार दिन
मरने के इंतज़ार ने पीना सीखा दिया)
यूं तो ज़िंदगी अपनी मैकदे में गुज़री है
इन नशीली आँखों से कब हमें पिलाओगे
तुम तो ठहरे परदेसी...