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Asfar Hussainhuatong
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जुड़ ना पाये बाद तेरे

टुकड़े दिल के रखूं क्या

याद तेरी कोई बात नहीं

लफ़्ज़ों में मैं लिखूं क्या

छाओ थी तेरे साथ की

बे रेहम धुप में

दीवानावार फिरूं

खोके अपना सायबान

तू मेहरम ना रहा मेरा

तू मेहरम ना रहा

चुप ने ऐसी बात कही

ख़ामोशी में सुन बैठे

जन्मों जो ना बीत सके

हम वो अँधेरे चुन बैठे

कितनी करूँ मैं इल्तिजा

साथ की चाँद से

दिल भरके आहे थक गया

फिर भी ना रो पाये हम

तू मेहरम ना रहा मेरा

तू मेहरम ना रहा

मैं सुन रहा था

सुन रहा था सभी

तू सुन सका ना

सुन सका ना कभी

उलझी सब ख्वाहिशों में

लफ़्ज़ों की बारिशों में

दिल का मकान ना रहा

ना रहा, ना रहा, ना रहा

ना रहा, ना रहा, ना रहा

ना रहा, ना रहा

तू मेहरम ना रहा मेरा

तू मेहरम ना रहा

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