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Saathia

Omar Mukhtarhuatong
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एक प्यार की नदिया में

एक पंछी था

उस के उस नादान दिल में कोई रहता था

जो रात क अंधेरो में जुगनों की तरह

अपने और उस को बुलाता था

वो रात का बंजारा है सुबहो का वो है तारा

हर सांस में छाया है

मेरी रूह में समाया है

चुप के से तू आ जा रे

मुझे हाथों में ले ले

आँखों की ज़ुबान से मेरे दिल में रस घोले

ओ साथिया आ

ओ रांझना आ

तेरी गलियों में फिरता हूँ हो कर में दीवाना

यह आँख जो बेहकी जाए

देखूं उसे तो शरमाये

आजा तू मेरी बाहों में आ दुनिया भूल जाएँ

तेरे होंठ जो छू जाएँ तो सांस ये थम जाए

नै जीना मेने तेरे बिना

आ मुझ को तू अपना ले

उस की खुशी में मुझ को अपनी खुशी मिली

उस क गम में मुझ को गम मिले

बस खो जाओं उस की आँखों में

हाँ रात दिन में राहों उस क ख्यालों में

ना सुरज ना चाँद उस से प्यारा है

जहाँ में खुद को खोलु उस वाहा को पाया है

हाँ दिन हो या रात तेरा ही साया

है मेने तो इस जिवन में अब तुझ को पाया है

ओ साथिया आ

ओ रांझना आ

तेरी गलियों में फिरता हूँ हो कर में दीवाना

यह आँख जो बेहकी जाए

देखूं उसे तो शरमाये

आजा तू मेरी बाहों में आ दुनिया भूल जाएँ

तेरे होंठ जो छू जाए तो सांस ये थम जाए

नै जीना मेने तेरे बिना

आ मुझ को तू अपना ले

आ आ आ आ आ आ

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