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Take Me Home (Pahadon Mein)

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आदत सी हो गयी थी

शहर के शोर की, भीड़ की

आदत सी हो गयी थी

अंजाने चेहरो की, रस्तो की

सुबह से शाम उलझानो में जाती थी

रातें मुझे अकेला पाती थी

आज आईने में देखा जो खुद को

एक अजनबी दिखता है मुझको

अब घर जाना है मुझे

पहाड़ों में खो जाना है मुझे

बहता इन वादियों में

खुद को पा जाना है मुझे

खुले आसमानो में

जंगल के शोर में

नदियो के किनरो पे

पत्तो की ओढ़ में

आँखें खुली तो समझ कुछ ना आया

कौन हू में पहचान ना पाया

अब घर जाना है मुझे

पहाड़ों में खो जाना है मुझे

बहता इन वादियों में

खुद को पा जाना है मुझे

दो कश ज़िंदगी के लिए

यह सासें तड़प गयी

अधजाली मदहोशी

यह बेगानी हवायें हधप गयी

अब घर जाना है मुझे

पहाड़ों में खो जाना है मुझे

बहता इन वादियों में

खुद को पा जाना है मुझे

अब घर जाना है मुझे

पहाड़ों में खो जाना है मुझे

बहता इन वादियों में

खुद को पा जाना है मुझे

अब घर जाना है मुझे

पहाड़ों में खो जाना है मुझे

बहता इन वादियों में

खुद को पा जाना है मुझे

अब घर जाना है मुझे

पहाड़ों में खो जाना है मुझे

बहता इन वादियों में

खुद को पा जाना है मुझे

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