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Tu Dhoor

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بول
कैसे कहूँ? है कुछ तुम्हें कहना

सदियों से जो दिल में ही दबता रहा

मिल तो ज़रा, मेरा वक़्त थम सा गया

एक पल नहीं बीते, हाँ, तेरे बिना

ख़ामोश सा ये मन मेरा

हाँ, ज़ोरों से कह रहा

"अब लौट आ मेरे पास तू

अधूरा सा हूँ मैं यहाँ"

तू दूर

तू दूर

मुस्तहिक़ मैं इस दूरी का ख़ाली बस

हाल ही में लिखता ख़त पानी पर

मिटता सब, हर एक हर्फ़, आसानी से मिलता रब

जो ना क़दर तो बिख़रा घर

जो तोड़ा दिल उसका, दर्द है मेरे सीने में

टूटा है कब का दम

हूँ तेरी मंज़िल तक पहुँचा तो देखा तुझको ख़ुश

तेरा सुख, तो लाज़िम सर्द मेहर

ये दूरी मजबूरी बनी

बना जो मर्ज़ तुम्हारा, ना हो कमी

ख़ुद-ग़र्ज़ काफ़ी, ना था lucky

आज बने जो अंजान तो पहचान जली

हाँ, तेरा नहीं, हक़दार तू बेहतर ख़्वाबों की

वजह तू ही गिने-चुने सच्चे इरादों की

अफ़सोस है, अब रो भी ना पाते

देखे कहीं तुम्हें मुस्कुराके, ज़िंदा हूँ तभी

सूना जहाँ

बस यादों में है निशाँ

है तू मुझे बस ख़्वाबों में दिख रहा

अब सुन ज़रा मेरे दिल की तू एक ही सदा

ग़म से मेरे मुझे आज

हाँ, कर दे ज़रा तू रिहा

"अब लौट आ मेरे पास तू

अधूरा सा हूँ मैं यहाँ"

तू दूर

तू दूर

तू दूर

Tu Dhoor بذریعہ Arslan Nizami/Ahmer - بول اور کور