इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
जान कर हम ने उन्हें नामेहरबाँ रहने दिया
इक ख़लिश को हासिल-ए
कितनी दीवारों के साये
कितनी दीवारों के साये हाथ फैलाते रहे
इश्क़ ने लेकिन हमें बेख़्वानमाँ रहने दिया
इक ख़लिश को हासिल-ए
आरजू-ए- इश्क़ भी
आरजू-ए- इश्क़ भी बख्शी दिलों को इश्क़ ने
फ़ासला भी मेरे उनके दर्मियाँ रहने दिया
इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया