इक यह काली जो
ख़यालो की छाई
बहाने से आके
मुझ को जागती है
बिखरे होए हैं
फलक पे यह तारे
ज़मीन पे यह साझ के
नूर भुजा के
यह अपनी इस दूनिया में
रंगो की दूनिया में
लेके कारवाँ
घम के यह चलते हैं
बुझ जो गाए दिये
इक यह ज़हर पिये
दबना ज़मीन में तो फिर तो
ए दिल संभाल जा
क्यूँ है तू रोता
जब यह सफ़र इक
आरज़ी रहना
ए दिल संभाल जा
क्यूँ है तू रोता
जब यह सफ़र इक
आरज़ी रहना
क्यूँ यह ज़ुल्म दिखता है
दुख हे क्यूँ बस बिकता है
रोती आँखे मओन की
कब तक और सहना है
हर कोई फ़ारूँ है
बस ना यहाँ मूसा है
लब पे तो मुहम्मद (सॉ) है
दिल मै ना वो दिखता है
जाउ कहाँ पे मै
रब की रज़ा में में
सजदे में झुक जाउ
उस से पाना मंगु
इक यह काली जो ख़यालो की छाई है
दिल हे दुखती है फिर तो
ए दिल संभाल जा
क्यूँ है तू रोता
जब यह सफ़र इक
आरज़ी रहना
ए दिल संभाल जा
क्यूँ है तू रोता
जब यह सफ़र इक
आरज़ी रहना
रोनक ए जहाँ की मै तलाश पे निकल परा
जो फिसला यहाँ पे तो
बेएखबर रह गया
जो रास्ता चुना है वो
इंतेहाँ सज़ा ना हो
तू हे मेरी जूसतजू है फिर तो
ए दिल संभाल जा, ए दिल संभाल जा
क्यूँ है तू रोता, क्यूँ है तू रोता
जब यह सफ़र इक, जब यह सफ़र इक
आरज़ी रहना, आरज़ी रहना
ए दिल संभाल जा
क्यूँ है तू रोता, क्यूँ है
जब यह सफ़र इक
आरज़ी रहना, आरज़ी रहना
आरज़ी रहना,आरज़ी रहना
जब यह सफ़र इक
आरज़ी रहना