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हूँ…..

लाहौर के उस

पहले जिले के

दो परगना में पहुँचे

रेशम गली के

दूजे कूचे के

चौथे मकां में पहुँचे

और कहते हैं जिसको

दूजा मुल्क उस

पाकिस्तां में पहुँचे

लिखता हूँ ख़त में

हिन्दोस्तां से

पहलू-ए हुस्ना में पहुँचे

ओ हुस्ना

मैं तो हूँ बैठा

ओ हुस्ना मेरी

यादों पुरानी में खोया

मैं तो हूँ बैठा

ओ हुस्ना मेरी

यादों पुरानी में खोया

पल-पल को गिनता

पल-पल को चुनता

बीती कहानी में खोया

पत्ते जब झड़ते

हिन्दोस्तां में

यादें तुम्हारी ये बोलें

होता उजाला हिन्दोस्तां में

बातें तुम्हारी ये बोलें

ओ हुसना मेरी

ये तो बता दो

होता है, ऐसा क्या

उस गुलिस्तां में

रहती हो नन्हीं कबूतर सी

गुमसुम जहाँ

ओ हुस्ना….

सूरज क्या उगता है पाकिस्तान में जैसे

होता अंधेरा यहाँ

ओ हुस्ना….

बारिश क्या होती है वैसे ही जैसे ये

रोती हिंदुस्तान में हाँ

ओ हुस्ना….

INTERLUDE…

****

****

वो हीरों के रांझे के नगमें मुझको

अब तक आ आके सताएं

वो बुल्ले शाह की तकरीरों के

झीने झीने साये

वो ईद की ईदी लम्बी नमाजें

सेंवैय्यों की झालर

वो दिवाली के दीये संग में बैसाखी के बादल

होली की वो लकड़ी जिनमें

संग-संग आंच लगाई

लोहड़ी का वो धुआं जिसमें

धड़कन है सुलगाई

ओ हुस्ना मेरी

ये तो बता दो

लोहड़ी का धुंआ क्या

अब भी निकलता है

जैसा निकलता था

उस दौर में वो वहाँ

ओ हुस्ना….

CHORUS…

CHORUS…

के आज़ादी की जंगों के क़िस्से अब भी

कहें जाते हैं क्या वहाँ….

ओ हुस्ना….

और

सुनकर जिन्हें रोता है पाकिस्तान वैसे ही जैसे

हिंदुस्तान……

ओ हुस्ना…..

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