उस नयी किताब के पन्नो सा तू लगता
ना है पढ़ी महेक रही हो पर
नज़रों से गुज़रा तू चल के मेरे आहिस्ता
आखो ने ना रख दी हो कुछ कसर
दो जहाँ के ये बाते
है ज़रूरी भी राते
पर समझने को वक़्त ना यहा
क्या है ऐसा तेरे किनारे पे
क्यू रहती है आके लहरे वाहा
प्यार की जब करता हू मैं बाते
बालो के इतराना पे रुकता समा
दो जहाँ के ये बाते
है ज़रूरी भी राते
पर समझने को वक़्त ना यहा