देखो, ज़रा ये दिल की दरारें
टूटे से तारे, ख़ाली किनारे
हाँ, तलाशें खोई बहारें
जितने ज़ख़म हैं, हैं उतने सहारे
ख़ता बिना सज़ा मिलेगी
वफ़ा कहाँ यहाँ मिलेगी
कोई तो वो जगह मिलेगी ना
चल वहाँ
ये रोशनी कहीं...
ये रोशनी कहीं ले चली
सुनी-सुनाई सी रोशनी, तू परछाई
मैं कहता ख़ुद को, "तू आएगी", पर हूँ ना कोई खाई
मैं आँखों से आईने में फ़ायदे की देखूँ क़ायदे से ख़ुद को
पर तुझको नहीं बोल पाया लफ़्ज़ जो मैं हफ़्तों से लेके बैठा
थक चुका भाग के, ज़िंदगी दाँव पे
दिल को बस हाथ में लेके मैं घूमूँ
अँधेरे में ढूँढूँ, मैं ख़ुद में ही गुम
पहले आके तू झूम
ताकि निकलूँ मैं सर से
यादें ज़मीं और तू सामने बरसे
बरसों में बैठा मैं फ़र्श में
लगा पहली बार इस पनाह में भी घर दोगे
जगाए तू आके भी
दुआ में जगा देती
सज़ा है तू दूर
ख़फ़ा है तू क्यूँ?
ख़ता बिना सज़ा मिलेगी
वफ़ा कहाँ यहाँ मिलेगी
कोई तो वो जगह मिलेगी ना
चल वहाँ
ये रोशनी कहीं...
(ये रोशनी कहीं ले चली) जगाए तू आके भी
दुआ में जगा देती
सज़ा है तू दूर
ख़फ़ा है तू क्यूँ?